पृथ्वी वासियों को भगवान कृष्ण के साथ-साथ माता विंध्यवासिनी का भी जन्म उत्सव मनाना चाहिए
– चंद्रशेखर शास्त्री जी महाराज
आज के दिन भगवान कृष्ण के साथ-साथ मां विंध्यवासिनी नेवी जन्म लिया था
भागवत पुराण के अनुसार जिस रात भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था उसी रात यशोदा के गर्भ से देवी विंध्यवासिनी का जन्म हुआ था। जब कंस ने उनको पत्थर से मारने की कोशिश की तो, वे चमत्कारिक रूप से विंध्यवासिनी के रूप में बदल गई। इस तरह देवी ने विंध्याचल को अपना निवास स्थान बना लिया।
भगवान श्री कृष्ण की माता का नाम देवकी था। जब मथुरा के कारागार में देवकी के गर्भ से अष्टम पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो उसी दौरान गोकुल में यशोदा मैया के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ। वसुदेव जी बालकृष्ण को लेकर कारागार से निकलकर यमुना पार कर गोकुल पहुंचे और उन्होंने उसी रात को बालकृष्ण को यशोदा मैया के पास सुला दिया और वे उनकी पुत्री को उठाकर ले आए। यह कार्य भगवान की माया से हुआ। गर्ग पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण की मां देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने ही बदलकर कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ। बाद में विंध्यवासिनी ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था।
बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसे यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि पुत्र की जगन कन्या का जन्म कैसे हुआ? आकाशवाणी में तो देवकी के आठवें पुत्र द्वारा मेरे वध की बात कही गई थी फिर यह पुत्री कैसे हो गई? कंस ने सोचा यह विष्णु का छल हो सकता है इसलिए उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य योगमाया स्वरूप प्रदर्शित कर कंस से कहा रे मूर्ख तेरा वध करने के लिए देवकी की आठवीं संतान को कभी की जन्म ले चुकी है। मुझे मारने से क्या होगा।
बाद में देवताओं ने योगमाया से कहा कि हे देवी आपका इस धरती पर कार्य पूर्ण हो चुका है तो अत: अब आप देवलोक चलकर हमें कृतघ्न करें। तब देवी ने कहा कि नहीं अब मैं धरती पर ही भिन्न भिन्न रूप में रहूंगी। जो भक्त मेरा जैसा ध्यान करेगा मैं उसे उस रूप में दर्शन दूंगा। अत: मेरी पहले स्थान की आप विंध्यांचल में स्थापना करें। तब देवताओं ने देवी का विंध्याचल में एक शक्तिपीठ बनाकर उनकी स्तुति की और देवी वहीं विराजमान हो गई। श्रीमद्भागवत पुरा में देवी योगमाया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है










