पर्युषण पर्व के छठवें दिन मनाया गया उत्तम संयम धर्म
बिना संयम के जीवन बिना ब्रेक की गाड़ी जैसा
आज मनाया जाएगा उत्तम तप धर्म
छतरपुर । आत्म आराधना के पावन पर्व पर्युषण के छठवें दिन 13 सितंबर को उत्तम संयम धर्म गरिमपूर्वक मनाया गया। आज सातवें दिन 14 सितंबर शनिवार को जैन धर्मावलंबियों द्वारा उत्तम तप धर्म मनाया जाएगा।दस दिवसीय पर्वराज पर्युषण नगर के सभी जैन मंदिरों में विभिन्न धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ उल्लासपूर्वक मनाया जारहा है।
डा सुमति प्रकाश जैन के अनुसार धर्म के दस लक्षणों में से छठवें धर्म उत्तम संयम धर्म को नियम संयम के साथ मनाया गया। संयम को जीवन का श्रृंगार माना गया है। विद्वानों के अनुसार जिसके जीवन में संयम नहीं, उसका जीवन बिना ब्रेक की गाड़ी जैसा है।
आज उत्तम तप धर्म पर भी सांगानेर से पधारे श्री जितेन्द्र शास्त्री जी बड़े जैन मंदिर में सारगर्भित प्रवचन देंगे। उत्तम तप की अवधारणा आखिर क्या है? अध्यात्म का मूल आधार उत्तम तप धर्म माना गया है। तप शरीर को कष्ट देकर किया जाता है। जैसे सोने को तपाकर आभूषण बनाए जाते हैं, उसी तरह शरीर को तपाकर ही आत्मा को परमात्मा बना जा सकता है। जिस तरह सोना तपकर गहना बन जाता है उसी तरह भले ही तप करने से शरीर को कष्ट होता हो, लेकिन उसके बाद तो आत्मा पूज्यता को प्राप्त हो जाती है।
तप शक्ति परीक्षण स्थल है, जो इसमें पास हो गया, वह मोक्ष को प्राप्त करने का हकदार हो जाता है। भगवान आदिनाथ ने करीब छह महीने तक कठोर तप- साधना की थी और मोक्ष को प्राप्त किया था। तीर्थकरों जैसी कठोर तप साधना करना वर्तमान में संभव नहीं है लेकिन ऐसी भावना तो भाई ही जा सकती है। कर्म निर्जरा के लिए जो तपा जाये वो तप धर्म कहलाता है।
हमें ‘तप’ के लिये कुछ नहीं करना है, मात्र अपनी बेतरतीब ढंग से फैल रही इच्छाओं को ध्यान से देखना भर है। अपनी इच्छाओं को मर्यादित करने तथा सही रूप में लाने की स्वाधीन एवं विवेकपूर्ण प्रक्रिया का नाम ही ‘तप’ है। कहा भी गया है कि –
*उत्तम तप निरवांछित पाले*,
*सो नर करम – शत्रु को टाले*