हिन्दी दिवस विशेष
बुंदेलखण्ड के साहित्यकार डॉ. गंगाप्रसाद गुप्त बरसैंया को हिन्दी साहित्य में मिले अनेक पुरस्कार
डॉ. गंगाप्रसाद गुप्त बरसैंया आत्मज सखाराम गुप्त का जन्म 6 फरवरी, 1937 को भौंरी जिला बांदा वर्तमान चित्रकूट (उ.प्र.) में हुआ था इन्होंने म.प्र. के शासकीय महाविद्यालयों में व्याख्याता, प्राध्यापक, प्राचार्य, स्नातकोत्तर प्राचार्य पद पर सेवा दी। इन्हंे महामहिम उप-राष्ट्रपति द्वारा अ.भा. भाषा साहित्य सम्मेलन की साहित्य उपाधि से सम्मानित तथा सम्मेलन द्वारा सर्वाेच्च राष्ट्रीय अलंकरण भारत भाषा भूषण एवं सरस्वती सम्मान एवं अनेक पुरस्कार एवं सम्मानों से अलंकृत किया गया।
बुंदेलखंड में जन्मे एवं रचे बसे डॉ. बरसैंया की साहित्य-साधना को देखकर विस्मय होता है। वह स्वतः स्फूर्त है। जन्मजात प्रतिभा से उत्प्रेरित है। उसमें निरन्तरता है।
*प्रमुख रचनाएं*
साहित्यकार डॉ. बरसैंया की अनेक कृतियां जैसे चिन्तन-अनुचिन्तन (समीक्षात्मक निबन्ध), हिन्दी का प्रथम अज्ञात सुदामा चरित्र (सम्पादन),वीर विलास (आल्हा सम्बन्धी प्राचीनतम पाण्डुलिपि) ,अरमान वर पाने का (व्यंग्य लेखों का संग्रह),निन्दक नियरे राखिये (व्यंग्य लेखों का संग्रह), अथ काटना कुत्ते का भइया जी को (व्यंग्य-संग्रह), कर्म और आराधना (चिन्तनपरक आलेख), रचना से रचना तक (समीक्षात्मक लेखों का संग्रह), तुलसी के तेवर, रस विलास (सम्पादन), मेरी जन्मभूमि मेरा गाँव, कभी-कभी यह भी (काव्य-संग्रह), नारी एक अध्ययन, बुन्देली एक भाषा वैज्ञानिक अध्ययन (सम्पादन), मानस मनीषा, रूपक और साक्षात्कार, विन्ध्यालोक(सम्पादन), लोक वाटिका, शब्दों के रंग बदलते प्रसंग, रचना अनुशीलन(समीक्षा), सृजन-विमर्श (समीक्षा), खरी-खरी (काव्य), संवाद साहित्यकारों से, एकांकी संकलन, मध्यकालीन काव्य आदि की रचना की।
समाज के जागरूक व्यक्तित्व को सादर अभिवादन