एक साहित्यकार समाज का पथ प्रदर्शक होता है -प्रो पुष्पा दुबे
आनंदी बड़े घर की बेटी इसलिए है क्योंकि उसने बड़प्पन दिखाया– प्रो गायत्री बाजपेई
छतरपुर। महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी अध्ययनशाला एवं शोध केंद्र छतरपुर में हिंदी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता कलायाध्यक्ष एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो पुष्पा दुबे ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित एवं सरस्वती वंदना प्रस्तुति के साथ किया गया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो पुष्पा दुबे ने कहा कि प्रेमचंद संवेदनाओं की बात करते हैं उन्होंने मनुष्यों के अलावा पशुओं में भी संवेदनाएं देखीं जिसका उदाहरण दो बैलों की जोड़ी के माध्यम से बताई , और यह भी बताया कि प्रेमचंद की कहानियों में बुंदेली झलक है
प्रो गायत्री बाजपेई ने कहा कि बड़े घर की बेटी कहानी में आनंदी ने अपने टूटे हुए परिवार को बचाया और कहा कि साहित्य वह है जो सबका हित करता है और उन्होंने कहा कि प्रेमचंद बहुत सरल व्यक्ति थे जो कहते थे वो करते थे , उन्होंने केवल विधवा विवाह का समर्थन ही नहीं किया बल्कि स्वयं भी एक विधवा शिवरानी देवी जी से विवाह किया।
प्रो बहादुर सिंह परमार ने कहा कि प्रेमचंद कालजयी रचनाकार है। साहित्यकार समाज के प्रति संवेदनशील होता है। और साथ ही उन्होने बताया कि अगर प्रेमचंद के साहित्य को और अच्छे से जानना है तो कमल किशोर गोयनका को पढ़िए क्योंकि उन्होंने मुंशी प्रेमचंद के संपूर्ण साहित्य का पुनः विश्लेषण कर उनके बारे में नवीन तथ्य दिये हैं|
इस अवसर पर श्री नंदकिशोर पटेल ने कहा प्रेमचंद जमीनी आदमी थे अर्थात जमीन से जुड़े साहित्यकार थे। साथ ही उन्होंने कहा कि अन्याय को सहने वाला ,अन्याय करने वाले से ज्यादा दोषी है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में समाज की सभी बुराइयों पर जोरदार प्रहार किया। श्री संतोष कुमार रजक जी ने कहानी बड़े घर की बेटी और गबन उपन्यास पर चर्चा करते कहा कि आज भी नारी बुंदेलखण्ड की आभूषण प्रियता पर रूचि रखती है यह उनकी कमजोरी है। डॉ जसरथ अहिरवार जी ने प्रेमचंद जी के अनमोल विचारों को प्रस्तुत किए। अतिथि विद्वान श्री दिव्यांश खरे ने अपने विचार रखते हुए कहा कि प्रेमचंद जी की तरह हमें भी सच्चाई पर अडिग रहते हुए अपनी समस्याओं को हावी नहीं होने देना चाहिए|
श्री कैलाश प्रताप नागर ने अपने उद्बोधन में कहा की किताबों से प्रेम करें। उन्होंने उदाहरण देते हुआ बताया कि अज्ञेय ने भी कहा था कि सबसे पहले मैंने प्रेमचंद को पढ़ा
साथ ही साथ हिंदी विभाग के शोधार्थियों ने अपने-अपने विचार रखें जिनमें से शोधार्थी सुरेखा अरिवार ने ईदगाह कहानी का समग्र मूल्यांकन करते हुए हामिद का उदाहरण देते हुए कहा कि कैसे परिस्थितियां समय से पहले व्यक्ति को परिपक्व बना देती हैं |
इसी क्रम में शोधार्थी कल्याण ने कहा कि प्रेमचंद जी की कहानियाँ और उपन्यासों को पढ़ना, सुनना ही काफी नहीं हैं बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारना भी अतिआवश्यक है। तभी विद्यार्थी और समाज का विकास संभव हो सकेगा | शोधार्थी सरोज कुमारी पटेल ने प्रेमचंद के पूर्वर्ती साहित्य पर टिप्पणी करते हुए उनकी साहित्य यात्रा पर विचार रखे , उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के कथा साहित्य में आदर्शवाद और यथार्थवाद किस प्रकार विद्यमान है |
शोधार्थी दीपशिखा सिंह ने प्रेमचंद के बारे में बताया कि प्रेमचंद वर्तमान को लेकर चलते हैं। आदर्श से यथार्थ की ओर लिखा है और किस प्रकार प्रेमचंद के उपन्यासों में राष्ट्रीय आंदोलन का चित्रण हैं ।इसी क्रम में शोधार्थी आशीष कुमार मिश्रा ने निर्मला और गोदान उपन्यास पर चर्चा करते हुए बेमेल विवाह के दुष्परिणामों पर अपने विचार रखे |
इसी क्रम में स्नातकोत्तर कक्षा के विद्यार्थियों ने अपने-अपने विचार रखे जिनमें से छात्र विमलेश कुमार ने प्रेमचंद के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने उनके उपन्यासों में मार्क्सवाद पर अपने विचार रखें |
छात्रा मानसी चौरसिया ने प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए उनकी रचनाओं पर टिप्पणी की |
छात्र पवन श्रीवास ने रानी सारंधा को याद किया और अपने विचार रखे | इसी क्रम में छात्र दयाशंकर अहिरवार ने प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों का संक्षिप्त सार बताया। अन्य छात्रों ने भी अपने अपने विचार रखे जिनमें से संजय अहिरवार, राजेश्वरी द्विवेदी, राजेंद्र कुमार, रोशनी अहिरवार , रोहिणी राजपूत, पूजा अहिरवार, अभिलाषा चौरसिया,रानी नायक शामिल रहे और कार्यक्रम के अंत में विभाग अध्यक्ष डॉक्टर पुष्पा दुबे ने आशीर्वचन देते हुए सभी छात्रों के कल्याण की कामना की | कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक श्री नंदकिशोर पटेल ने किया तथा श्री संतोष रजक के आभार व्यक्त किया। राष्ट्रगान के साथ ही कार्यक्रम का समापन हुआ।