धीरज चतुर्वेदी बुंदेलखंड
देश 78 वा स्वतंत्रता दिवस ख़ुशी के साथ मना रहा है। देशभक्ति और देशद्रोह की परिभाषा में आज भीं उलझें हुए। सभी अपनी अपनी परिभाषा से देशभक्ति की परिभाषा को गढ़ रहे है। अमृतकाल चल रहा है तो राष्ट्रीय पर्व के आते ही देशभक्ति का जज्बा, जूनून के लिये तिरंगा यात्रा, हर घर तिरंगा जैसे आयोजन किये गये पर क्या 16 अगस्त के बाद यह जज्बा क़ायम रहेगा। सरकारी योजनाओं में लूट खसोट, गरीबो की योजनाओं में सपोलो का दंश, न्योछावर, सेवा, खर्चा पानी जैसी सिस्टम में घुल चुकी व्यवस्था अब समाप्त हो जायेगी? वैसे तो देशभक्ति का पाठ पढ़ने के बाद सुधार आना चाहिये। नदियों को माँ रूपी मानने की धार्मिक आस्था का पुन जीवन होगा, तालाबों से कब्जे हटेंगे, सड़क घोटाले नहीं होंगे, इत्यादि बहुत कुछ बदलाव वह देशभक्त ही ला सकते है जिन्होंने देश से प्रेम मोहब्बत की होंगी। वरन राष्ट्रीय पर्व पर देशभक्ति का स्वांग और बाद में देशद्रोह। आखिर देशद्रोह क्या है? देश के साथ गद्दारी की परिभाषा केवल बाहरी देशो का साथ देना, आतंकी घटना को अंजाम देना तक सीमित नहीं है। गद्दार की गद्दारी तो देश की योजनाओं और अन्य विकास योजनाओं की आढ़ में घूसखोरी करना भीं है। तभी तो सवाल है कि हम कितना बदले। दिल को टटोलो, आत्मा की सच्चाई की बात करें और आंकलन करे कि 78 वा स्वतंत्रता दिवस पर हम कितने बदले। महज तिरंगा लहराने से बदलाव नहीं आयेगा बल्कि चाल चरित्र चेहरे को बदलना होगा। देश भक्ति का जज्बा दिल में होना चाहिये वरना तो दिखावा है जो उस गुब्बारे की तरह जो फूट जाता है। आने वाली पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जा रहा है पर सबक देने वाले क्या बदलेंगे? क्यों कि सद वाक्य है कि हम बदलेंगे तो युग बदलेगा। अगर ऐसा नहीं होता है कि एक दिन का राष्ट्रीय पर्व मनाने का कुछ औचित्य नहीं है क्योंकि सिस्टम तो दलदल में सना है।
फिर भीं इस आस के साथ कि आज नहीं तो कल सवेरा होगा जिस सूर्य की पहली किरण में देशभक्ति की असल रोशनी से हम भीं नहाते दिखेंगे।
Bhaisahab bahut accha likhte he aap jaise logo se hi patrkarita zinda he