कम शब्दों में गहरी बात कहना, कृष्णमोहन झा के लेखन की एक अद्वितीय विशेषता
दामोदर सिंह राजावत/
दामोदर सिंह राजावत
वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण मोहन झा का नाम पत्रकारिता के उन चुनिंदा नामों में शुमार है, जो न केवल अपनी सत्यनिष्ठा के लिए बल्कि अपनी संक्षिप्त, सटीक और प्रभावशाली अभिव्यक्ति शैली के लिए भी जाने जाते हैं। उनका लेखन और विचार प्रस्तुत करने का तरीका उस कहावत को सार्थक करता है जिसमें कहा गया है, “गागर में सागर भरना।” कम शब्दों में गहरी बात कहना, उनके लेखन की एक अद्वितीय विशेषता है।
कृष्ण मोहन झा ने अपनी पत्रकारिता के दौरान अनेक मुद्दों पर गहनता से विचार किया है, चाहे वह सामाजिक समस्याएँ हों या राजनीतिक घटनाक्रम। उन्होंने हमेशा इस बात का ख्याल रखा कि किसी भी विषय को इतने स्पष्ट और सरल शब्दों में प्रस्तुत किया जाए कि वह आम जनमानस तक आसानी से पहुँच सके। यही कारण है कि उनके लेख और टिप्पणियाँ न केवल शिक्षित पाठक वर्ग बल्कि सामान्य जनता के बीच भी लोकप्रिय हैं।
उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे जटिल से जटिल मुद्दे को भी सरलता से प्रस्तुत कर देते हैं, जिससे पाठक उसे गहराई से समझ सकें। उदाहरण के लिए, वे राजनीति, सामाजिक समस्याएँ या नैतिक मुद्दों पर जब विचार रखते हैं, तो बिना किसी पेचीदगी के उन बातों को सामने रखते हैं जो न केवल सोचने पर मजबूर करती हैं बल्कि दिशा भी दिखाती हैं।
कृष्ण मोहन झा की लेखनी हमें यह सिखाती है कि आलोचना और नकारात्मकता की बजाय हमें अपने अंदर की कमजोरियों को पहचानने की आवश्यकता है। जिस प्रकार उनका यह विचार कि *”औरों की बुराई को न देखूं, वो नजर दे, हां, अपनी बुराई को परखने का हुनर दे,”* हमें आत्ममूल्यांकन की ओर प्रेरित करता है, वैसे ही उनका समूचा लेखन भी हमें अपने अंदर झांकने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने की प्रेरणा देता है।
कृष्ण मोहन झा का मानना है कि सकारात्मकता और आत्मनिरीक्षण ही वह रास्ता है जिससे समाज और व्यक्ति दोनों को सही दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है। उनके विचार मोटिवेशनल इसलिए हैं क्योंकि वे किसी भी समस्या या चुनौती को इस नजरिए से देखते हैं कि हम उसमें सुधार कैसे ला सकते हैं, बजाय इसके कि हम उसमें उलझकर रह जाएं।
उनका लेखन एक आदर्श उदाहरण है कि पत्रकारिता केवल सूचनाएँ देने का कार्य नहीं है, बल्कि समाज में सुधार और जागरूकता फैलाने का एक माध्यम भी है। वे हमें यह सिखाते हैं कि अपने अंदर की कमजोरियों को देखना और उन्हें सुधारना ही वास्तविक सफलता का मार्ग है।
(लेखक डिजिटल मीडिया के ख्यात पत्रकार है)